Sunita gupta

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लेखनी कहानी -16-Sep-2022

एक औरत ने क्या खूब कहा
छोटी थी जब,  बहुत ज्यादा बोलती थी 
माँ हमेशा झिडकती , 
चुप रहो ! बच्चे ज्यादा नहीं बोलते .

थोड़ी बड़ी हुई जब , थोड़ा ज्यादा बोलने पर 
माँ फटकार लगाती 
चुप रहो ! बड़ी हों रही हों .

जवान हुई जब , थोड़ा भी बोलने पर 
माँ जोर से डपटती 
चुप रहो  , दूसरे के घर जाना है .

ससुराल गई जब , कु़छ भी बोलने पर 
सास ने ताने कसे , 
चुप रहो , ये तुम्हारा मायका नहीं .

गृहस्थी संभाला जब , पति की किसी बात पर बोलने पर 
उनकी डांट मिली , 
चुप रहो ! तुम जानती ही क्या हों ? 

नौकरी पर गई , सही बात बोलने पर
 कहा गया 
चुप रहो ! अगर काम करना है तो 

थोड़ी उम्र ढली जब ,  अब जब भी बोली तो 
बच्चों ने कहा 
चुप रहो ! तुम्हें इन बातों से क्या लेना .

बूढ़ी हों गई जब , कुछ भी बोलना चाहा तो 
सबने कहा
चुप रहो ! तुम्हें आराम की जरूरत है .

इन चुप्पी की तहों में , आत्मा की गहों में 
बहुत कुछ दबा पड़ा है 
उन्हें खोलना चाहती हूँ , बहुत कुछ बोलना चाहती हूँ 
पर सामने यमराज खड़ा है , कहा उसने 
चुप रहो ! तुम्हारा अंत आ गया है 
और मैं चुपचाप चुप हो गई 
हमेशा के लिए .🌹🌹🌹🌹 🙏🙏
सुनीता गुप्ता कानपुर

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